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कविता-- समुद्र का शोर


कविता--समुद्र का शोर

  निर्जन पड़े समुद्र के तट 
हाहाकार करते समुद्र का शोर
बालुका राशि में खुद को पटकते
 खुद को खींचते खुद को छोड़ते
 न जाने कितनी लहरों को अपने में डुबोते
समुद्र का शोर चलता रहता
 लहरों संग मचलता रहता
 आसमान के चांद को देखकर
 ज्वार भाटा में बदलता रहता 
 समुद्र है तो शोर है
 अथाह पानी घनघोर है।

***
सीमा..✍️🌷
©®
#लेखनी प्रतियोगिता
स्वैच्छिक

 

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8 Comments

Swati chourasia

20-Sep-2022 07:45 PM

बहुत खूब

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Suryansh

16-Sep-2022 07:53 AM

बेहतरीन

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